जयराम व jbkss का पुरे झारखंड में बहिष्कार

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झारखंड निर्माता पुर्व विधायक सूर्य सिंह बेसरा का अपमान करने वाले जयराम व jbkss का पुरे झारखंड में बहिष्कार होगा: इमाम सफी।* ‌ ‌ ‌

झारखंड राज्य बने 24 साल हो गया है और आज भी झारखंड आंदोलनकारी व निर्माताओं के सपनों का झारखंड नहीं बन सका है। न ही कोई स्थानीय नीति बन सकी है न ही कोई नियोजन नीति ही बनी है। गाहे-बगाहे झारखंड सरकार ने झारखंड को लूटने का ही काम किया है और झारखंड विरोधी नीति थोपने का काम किया है। ऐसा ही एक घटना 2021 के दिसंबर माह में बोकारो, धनबाद में भोजपुरी व मगही भाषा को प्रतियोगी परीक्षा में अनिवार्य कर दिया।

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जिसका जोरदार विरोध बोकारो के स्थानीय युवाओं ने किया। जिसमें मुख्य रूप से अरविंद सिंह राजपूत, निमाइ,सचिन महतो,राजेश ओझा, इमाम सफी, सोहराई हांसदा तीर्थनात, रामवृक्ष, सब्बीर अंसारी ,घनश्याम, संतोष महतो व प्रमोद मुर्मू मुख्य रूप से उपस्थित थे।

देखते ही देखते विरोध ने आन्दोलन का रुप ले लिया। इसी बीच धनबाद में भी आन्दोलन पहुंचा और कुछ दिन बाद जिला परिषद की तैयारी करने वाला लड़का जयराम महतो है ने अति महत्वाकांक्षा रखते हुए आन्दोलन में को हाईजैक करने का कोशिश किया, जिसके मंशा सीघ्र ही स्थानीय युवाओं ने मंशा भांप लिया। इसी बीच वह एक नया संगठन बना कर भाषा-खतियान आन्दोलन की बात करने लगा लेकिन उसका वास्तविक उद्देश्य नेता बनना था।

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जिसका पुराने साथी समझ कर साथ छोड़ दिया, लेकिन उसी बीच कुछ कुडमी संगठन के अगुआ ने जो लंबे समय से आदिवासी बनने के लिए आन्दोलनरत थे वे जयराम को जो एक कुडमी जाति से आता है उसे आगे करके जाति आन्दोलन को धारदार बनाने का रणनीति अपनाई और कुडमी संगठनों का साथ मिलने लगा और अब राजनीति में उतर कर चुनाव लडने की घोषणा कर चुका।

आज आन्दोलन का वास्तविक उद्देश्य काफी पीछे छूट चुका है। ‌ ‌ ‌भाषा-खतियान आन्दोलनकारी इमाम सफी का कहना है “कुछ दिनों से जयराम महतो अपने सभाओं की भीड़ देख घमंड में पागल हो गया है, जिसका प्रमाण उसके भाषा शैली में साफ दिखता है। उसके भाषा असंवैधानिक, अमर्यादित व उग्रवाद हो गया है। वह पुलिस प्रशासन से लेकर अधिकारियों को, विधायक, मंत्री सांसद को तो बूरा भला बोल ही रहा है झारखंड आंदोलनकारियों का भी अपमान कर रहा है। पिछले दिनों पूर्व विधायक सूर्य सिंह बेसरा जैसे झारखंड आंदोलनकारी को भी बूरा भला बोल दिया और चेहरे पर कोई शिकवा नहीं करता।

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मेरा मानना है यह सिर्फ सूर्य सिंह बेसरा का अपमान नहीं है संपूर्ण झारखंड के आन्दोलनकारी का अपमान है जिसका सम्पूर्ण झारखंड में विरोध होना चाहिए। अगर इन असभ्य लोग का समय पर विरोध नहीं किया गया तो मधूर वासी झारखंड की पहचान खत्म हो जाएगी और राज्य जंगलराज की ओर अग्रसर हो सकता है।

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