मनुस्य की उत्त्पत्ति में ही ingrained है विस्तार लाभ करना । प्रत्येक सभ्यता अपने अपने कौशल से ही विस्तृति (expansionism) लाभ करना चाहती है और यह विस्तृति मिली है उसे अपने जैविक संस्थिति(genes) में ।। genes पीढ़ी दर पीढ़ी पिता पुत्र किम्बा पुत्री के माध्यम से विस्तृति लाभ करती है, और यह विस्तृति का माध्यम विवाह का सुसंस्कार है ।
भारतीय आर्य ऋषिओं ने मनुस्य की सभ्यता में विवाह का विशेष प्रयोजन समझा । कहा गया है “a good human being is born , not made” ( एक अच्छा मनुस्य जन्म दिए जाता है , उसे तैयार नहीं किया जा सकता ) . वास्तव में स्वामी और स्त्री के मिलन के समय स्त्री का मनोभाव(pshycological temperament) अपने स्वामी के प्रति जैसा होता है , उसी के अनुरूप आवृति (frequency) उत्त्पन्न होती है । उसी आवृत्ति के प्रतिध्वनि (resonance) में जो आत्माएं अथवा एनर्जी ब्रह्माण्ड में विचरण कर रही होती हैं , वही आत्मा स्वामी के शुक्राणु ( जो की inactive state में रहती हैं , रिलीज़ होने तक ) को activate करती हैं , और वही स्त्री के ओवम को fertilise कर मनुस्य का स्वरुप ग्रहण करता है ।
अर्थात जो नारी अपने स्वामी को देव तुल्य समझती है , उसकी आवृत्ति भी तदनुकूल रहती है , एवं जहाँ हीनमन्यता का बोध रहता है वहां पर निम्न स्त्तर की आत्माएं विचरती हैं । इसका reference हम श्रीमद गीता में पा सकते हैं जहाँ पर अर्जुन श्री कृष्णा को बतलाते हैं ” अधर्मविभावत कर्ण प्रड्यूसयंति कुल स्त्रियः , स्त्रीषु दुसतासु वार्ष्णेय जायते वर्ण संकर ” (bhagvad gita as it is, page , 66) – when irreligion is prominent in the family , O krisna , the womanhood , O descendant of Vrsnvi , comes unwanted progeny.
इसका जीवंत उद्धरण आज का अफ़ग़ानिस्तान है . अफ़ग़ानिस्तान में नारी जाती को ज़ोर ज़बरदस्ती कन्वर्ट कर अथवा ज़बरदस्ती विवाह से जिस भाव की सृष्टि हुई उसी से ही म्लेच्छाचार तालिबान की उत्त्पत्ति हुई जो समाज को युद्ध एवं रोग की और धकेलती है – ” दोसाइर ेतैः कुल घननं वार्ना संकरा कारकैः , उत्साद्यन्ते जाती धर्मः कुल धर्मास च सस्वतः ” (page 68) – the evil deeds of those who destroy the family tradition and thus give rise to unwanted children , all kinds of community projects and family welfare activities are devastated .
यही है अनुचित विवाह संस्कार का मुख्या example.
अगर भारतीय सभ्यता क लोग विवाह संस्कार को बचा क न रख पाए तो आने वाली पीढ़ीओं में वार्ना संकर की उत्त्पत्ति हमें भी chaos , अशांति की तरफ धकेलेगी ।
भारतीय सनातन सभ्यता में इसलिए 2 तरह क विवाह का ही प्रयोजन है ।
1 सवर्ण अनुलोम (hypergamous) – अपने ही वार्ना में विवाह करना उचित है ।
2 असवर्ण अनुलोम – पुरुष अपने से नीचे वार्ना की कन्या से विवाह कर सकता है ।
प्रतिलोम (hypogamous) विवाह को अनुचित ठहरा गया है एवं इसी से ही वर्ण संस्कारों की उत्त्पत्ति होती है । इसी से म्लेच्छाचार वाले लोगों की उत्त्पत्ति होती है । प्रतिलोम विवाह में उच्चा वार्ना की कन्या अपने से नीचे वार्ना क पुरुष से विवाह नहीं कर सकती ।
इस युग में परन्तु सवर्ण विवाह का ही प्रयोजन है ।
इसका वैज्ञानिक पुस्टीकरण एवं अन्य सभी पहलुओं में हमलोग आगे की आर्टिकल में जानेंगे ।