देश के महान स्वाधीनता सेनानी भारत के द्वितीय प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री अदम्य साहस के प्रतिमूर्ति थे। लाल बहादुर शास्त्री का संपूर्ण जीवन त्याग और बलिदान से ओतप्रोत रहा लाल बहादुर शास्त्री सच्चे अर्थों में स्वाधीनता आंदोलन के एक अपरिमेय जोधा थे।
लाल बहादुर शास्त्री व्यक्तित्व और कृतित्व सदा देशवासियों को प्रेरित करता रहेगा । लाल बहादुर शास्त्री महात्मा गांधी के आवाहन पर मात्र 16 साल की उम्र में स्वाधीनता आंदोलन से जुड़े थे।
स्वाधीनता आंदोलन से लेकर उन्होंने भारत माता की सेवा की बेसिक बेमिसाल रहा था। लाल बहादुर शास्त्री का पहचान नेक निर्भीक और साहस से ओतप्रोत प्रधानमंत्री के रूप में रहा ।
लाल बहादुर शास्त्री सादगी सरलता सहजता सत्य पथ पर चलने और राष्ट्रभक्ति देखने देखते ही बनती थी। लाल बहादुर शास्त्री के लिए राष्ट्र ही सब कुछ था। राष्ट्र की सेवा करते हुए उन्होंने अपनी जान तक गंवा दी।
लाल बहादुर शास्त्री गांधी के पद चिन्हों पर आजीवन चलकर एक मिसाइल काम किया। लाल बहादुर शास्त्री कद काठी से छोटे जरूर थे किंतु उनका उतना ही विचार उनका दिल था। देश के प्रति जज्बा और जनता से बेपनाह मोहब्बत लाल बहादुर शास्त्री का देखते ही बनता था।
भारत पर बुरी नजर रखने वाले देश के प्रति शास्त्री जी का नजरिया शख्स था। शास्त्री जी अदम साहस के बल पर परिस्थितियों को अपने अधीन कर लिया करते थे।
पंडित जवाहरलाल नेहरू के निधन के बाद जब शास्त्री जी देश के प्रधानमंत्री बने थे तब वह वक्त था जब संपूर्ण देश में अनाज की भारी किल्लत थी। अमेरिका जैसे देश से लाल गेहूं भारत आता था। इसी लाल गेहूं से देशवासी अपने भूख मिटाते थे।
जबकि भारत का इतिहास कदापि ऐसा ना था। भारत अनाज मामले में पूरी तरह निर्भर था। इस बात को लाल बहादुर शास्त्री भली-भांति जानते थे। इसलिए उन्होंने एक संकल्प लिया कि चाहे कुछ भी हो जाए अमेरिका से गेहूं नहीं मंगवा आएंगे।
लाल बहादुर शास्त्री खुद और अपने बच्चे एक दिन उपवास रखा । उसके पश्चात शास्त्री जी ने देशवासियों से अपील की कि हम सब एक दिन का उपवास रखेंगे। और अमेरिका से खाने के लिए गेहूं नहीं मंगवा आएंगे।
शास्त्री जी के अपील का ऐसा असर हुआ कि संपूर्ण देशवासियों ने उपवास रखना प्रारंभ कर दिया था। बड़ा ही व्यापक असर हुआ।
शास्त्री जी देश को अनाज के मामले में आत्मनिर्भर आत्मनिर्भर बनाने के लिए तुरंत कार्रवाई की। शास्त्री जी ने किसानों के साथ लगातार बैठकर की। किसानों की समस्या को दूर किया। संपूर्ण देश के किसान देश को अनाज के मामले में आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में जुट गए।भारत देखते ही देखते अनाज के मामले में आत्मनिर्भर बन गया।
शास्त्री जी जब देश के प्रधानमंत्री बने थे तब आज की तरह परिस्थितियां ना थी बल्कि पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान से बार-बार सीमा पर सैनिक हस्तक्षेप के कारण शांति बनी हुई थी।
चीन से युद्ध में भारत के पराजय से हजारों एकड़ जमीन चीन के हाथों में चला जाना आदि कई समस्याएं थे। इन सब चीजों को ध्यान में रखते हुए लाल बहादुर शास्त्री ने सीमा की सुरक्षा को और मजबूत किया।
लाल बहादुर शास्त्री देश की सीमा रक्षा को मजबूत करने के लिए तीनों सेना प्रमुख के साथ बैठकर की। बैठक में देश की रक्षा व्यवस्था कैसे मजबूत हो ?इस दिशा में लाल बहादुर शास्त्री कई आवश्यक निर्णय लिया ।
शास्त्री जी ने कई योजनाओं का शिलान्यास किया है इस समय उन्होंने जय जवान और जय किसान का नारा संपूर्ण देश को दिया।
देश की पोस्ट सीमा सुरक्षा की दिशा में और अनाज की आत्मनिर्भरता की दिशा में मजबूती प्रदान करने के लिए देशवासियों का ध्यान आकृष्ट किया था।
देशवासियों का ध्यान देश की सेना और किसानों पर गया। संपूर्ण देश में किसान और सैनिकों का मनोबल बढ़ाया। इसका आने वाले दिनों में भारतीय समाज पर बहुत ही व्यापक असर हुआ।
देश के सैनिकों और किसानों का मनोबल बड़ा। देश के दो महत्वपूर्ण स्थान पूरी मजबूती के साथ अपने क्षेत्र में आगे बढ़ने लगे।
आज देश जो अनाज के मामले में आत्मनिर्भर है इसमें लाल बहादुर शास्त्री चीज बड़ी ही योगदान है। सुरक्षा के मामले में इतना मजबूत है इसका ताना-बाना लाल बहादुर शास्त्री के प्रति प्रधानमंत्री काल से ही हो गया था।
लाल बहादुर शास्त्री महात्मा गांधी के बाद दूसरे ऐसे बड़े नेता के रूप में साबित हुए जिन्होंने बातों पर भारतीय समाज पर व्यापक असर हुआ।
लाल बहादुर शास्त्री का जीवन त्याग और बलिदान से ओतप्रोत भारतीय स्वाधीनता आंदोलन आंदोलन की गति तेज और मजबूती प्रदान के लिए हुआ था ।
शास्त्री जी राष्ट्रीय नेताओं की पंक्ति में आ गए थे 15 अगस्त 1947 को आजाद हुआ लाल बहादुर शास्त्री ने कांग्रेस पार्टी को मजबूत बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
कांग्रेस पार्टी को मजबूत करने के लिए संपूर्ण देश की यात्रा की परिणाम स्वरूप संगठनात्मक कांग्रेश पार्टी देश भर में मजबूत हुई थी।
इसी का प्रतिफल था कि देश में लंबे समय तक कांग्रेस का शासन रहा देश की आजादी के बाद लाल बहादुर शास्त्री उत्तर प्रदेश की राजनीति से जुड़े थे।
उत्तर प्रदेश में गृह मंत्री पद परिचय दिया था। शास्त्री के विलक्षण प्रतिभा को देखकर अखिल भारतीय कांग्रेस पार्टी ने शास्त्री को केंद्र की सेवा से जोड़ दिया।
शास्त्री जी ने केंद्र सरकार के विभिन्न मंत्रालयों का दायित्व संभाला। रेल मंत्री पद पर रहते हुए शास्त्री ने जब एक बार रेल दुर्घटना हो गई थी जिसमें कई लोगों की जान चली गई थी तो शास्त्री ने इस दुर्घटना की जवाबदारी स्वयं पर ले लिया और उन्होंने रेल मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया।
शास्त्री के इस स्थिति का भारतीय समाज पर बड़ा ही व्यापक प्रभाव पड़ा। देश की आजादी के बाद पहली घटना थी जिसमें एक केंद्रीय मंत्री ने अपनी जवाबदेही स्वीकार कर मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था।
प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू अस्वस्थ रहे थे तब बिना किसी विभाग के मंत्री रहते हुए शास्त्री केंद्रीय मंत्रिमंडल के विभिन्न विभागों का संचालन बड़ी सफलता पूर्वक किया था ।
नेहरू के निधन के बाद शास्त्री देश के द्वितीय प्रधानमंत्री बने थे शास्त्री जी महीने ही देश के प्रधानमंत्री के रूप में अपनी सेवा दे पाए थे ।
शास्त्री अपना 18वां हमेशा यादगार बन गया था देश की उन्नति के लिए शास्त्री जी ने योजनाओं का शिलान्यास किया ।
शास्त्री जी की प्रसिद्धि सिर्फ देश में ही नहीं बल्कि विदेशों में फैल गई थी। पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान लाल बहादुर शास्त्री के और मजबूत नेतृत्व की ओर नजर उठाने का साहस नहीं कर पा रहा था।
शास्त्री जी ने देश को और मजबूती प्रदान करने में लाल बहादुर शास्त्री ने कोई कसर नहीं छोड़ी 18 घंटे नियमित काम किया करते थे।
छुट्टी के दिन भी काम किया करते थे ।उनके जीवन का एक अभिन्न हिस्सा बन गया था।
शास्त्री जी ने कहा था कि
देश का काम कर मुझे आनंद की प्राप्ति होती है मैं काम करता नहीं यह शास्त्री जी के अंदर के साहस और देश के प्रति शास्त्री की सत्य निष्ठा को प्रदर्शित करता है। शास्त्री जी प्रधानमंत्री रहते हुए एक आम भारतीय की तरह जीवन जीते थे।
एक बार उसकी पत्नी श्रीमती ललिता जी ने दो तरह की सब्जी थी तब शास्त्री जी ने कहा था कि देशवासियों को ढंग से एक सब्जी भी नसीब नहीं होता। तुमने मुझे दो तरह का सब्जी दे दी। इसलिए मुझे एक ही सब्जी देना।
यह कह कर उन्होंने एक सब्जी का कटोरा आपने भोजन की थाली से अलग कर दिया था। इस छोटे से उदाहरण से यह बात पर परिलक्षित होती है कि लाल बहादुर शास्त्री देशवासियों को कितना ख्याल रखते थे।
शास्त्री जी महात्मा गांधी की तरह अंतिम व्यक्ति तक विकास पहुंचाने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। लाल बहादुर शास्त्री समय के बड़े पाए थे जो देश हित में नहीं मानते थे और छोटी-छोटी बचत के माध्यम से देश की आर्थिक स्थिति को मजबूत करना चाहते थे।
शास्त्री जी की सोच थी कि एक भारतीय राष्ट्रपति और सीख लेनी चाहिए
विजय केसरी लेखक हजारीबाग झारखंड के कलम से