जनजातीय एंव क्षेत्रीय भाषा विभाग अंतर्गत खोरठा भाषा संस्कृति का अपना एक अलग ही महत्व है । जिसके माध्यम से समाज के सभी पहलू ओं पर साहित्यिक रूप से समय समय पर अपना उद्गार व्यक्त साहित्यकारों के द्वारा किया जाता है । मातृभाषा के रूप किसी समाज के विकास में भाषा संस्कृति का अपना एक महत्वपूर्ण योगदान होता है ।
बहुत बड़े विद्वानों का कहना है , किसी भाषा संस्कृति को या समाज को खत्म करना है तो उसकी भाषा संस्कृति को षड्यंत्र के तहत विलुप्त कर दिया जाय । वो समाज जीवित रहते हूए भी मृत्यु के समान समझा जाता है ।
इसमें खोरठा भाषा संस्कृति के लोक साहित्य और शिष्ट साहित्य यहां की गांव-गंजार और झारखंड की सुगंध को देश-विदेश में संदेश के रूप में पहुंचाती है , यहाँ का संगीत के बारे में कहना ही क्या है । डॉ. रामदयाल मुण्डा जैसे व्यक्ति की उक्ति है कि – ‘जे नाची , से बाची’ इस उक्ति के अंतर्गत झारखंडी भाषा संस्कृति संगीत तमाम चीजों को समेट कर कहा गया है ‘डोंगल चेठा’ कविता संग्रह खोरठा भाषा के लिए मील का पत्थर भविष्य में होगा ।
समाज के विभिन्न आयामों का कविता के रूप में संदीप कुमार महतो ने सही तरीके से चित्रण किया है । खोरठा भाषा प्रेमी होने के कारण इनकी कविताओं में झारखण्डी, समाज कला संस्कृति व जनमानस की सोंच संवेदनाओं का प्रकृतिकरण इनकी कविताओं में हुआ है । इन्होने सरल, सुबोध और पाठकों के समझ में आने वाली सीधी-सादी व्यवहारिक भाषा का उपयोग किया है । जो आसानी से समझ में आ सके ।
इनके काव्य संग्रह में कुल 25 कविताएं हैं ।
संग्रह की पहली कविता ‘पढ़ रे नूनू’ में ग्रामीण युवा- युवतियों को पढ़ने के लिए प्रेरित ही नहीं बल्कि उनके माध्यम से समाज सुधार की बात भी करते हैं । ‘लोर’ कविता में अपनी पीड़ा को दर्शाते हैं ।
‘दारूक निसा’ कविता में झारखण्ड समाज की चिंता भी करते हैं । जो नसा के शिकार होकर घर परिवार को बर्बाद भी करते हैं । पियार कविता में आजकल के नवयुवकों की भावनाओं को प्रकट करते हैं – तोरा कि पता हामर कइसन ही दसा ……। आपन भासा कविता में वे अपनी मातृभाषा को बचाने तथा विकास की भी बात कर रहें हैं । पानी कविता में ….. पानी बिना सब सुन, गाछ, पाल्हा, नदी नाला पानी बिना सब जीवेक जाला । इस कविता में कवि पानी कि महत्ता की संदेश देतें हैं । वहीं जावा पोरोब कविता के माध्यम से अपनी पर्व, त्यौहार संस्कृति की भी बात करते हैं । किताब कविता में किताब की महत्ता की चर्चा करते हैं । माय कविता में मां ही सर्वोपरि होती है इसकी बेखुबी से बात कही है ।
धानेक चास , पेटेक भुख , खेतिहर बेटी गरीबेक दसा आदि सभी कविताएं समाजिक दशाओं का यथार्थ चित्रण करती है । तो दूसरी ओर नवयुवा पीढ़ी जो भटक रहें हैं प्यार में पढ़ाई लिखाई से दूर भाग रहें हैं । नसा के शिकार हो रहें हैं । समाज पिछड़ रहा है । आदि घटनाओं की पोल खोल रही है । साथ ही साथ झारखण्डी भाषा पर्व संस्कृति को बचाने व विकास करने की संदेश देती है । इसके लिए इन्हे बहुत बहुत धन्यवाद की झारखण्ड की महत्वपूर्ण मातृभाषा खोरठा के विकास में एक नया कदम की शुरूआत हुई है। जिसमें आने वाले पाठक कविता के माध्यम से नये अध्ययन के माध्यम से लिखने की प्रेरणा नवीन लेखकों को मिलेगा ।
डोंगल चेठा किताब की शुभकामना संदेश हेतू प्रख्यात भाषा वैज्ञानिक डॉ. नेत्रा पौड्याल जर्मनी से दियें है । नागपुरी भाषा विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. खालिक अहमद , वहीं खोरठा गीतकार विनय तिवारी , खोरठा साहित्यकार डॉ.गजाधर महतो प्रभाकर, खोरठा कोकील सुकुमार जी , राधा गोविंद विश्वविद्यालय रामगढ़ के खोरठा विभागाध्यक्ष अनाम ओहदार जी , खोरठा स्नातकोत्तर विभाग राँची, के विभागाध्यक्षा कुमारी शशि जी , हिन्दी के सहायक प्राध्यापक डॉ. मुकुंद रविदास, डॉ. त्रिवेणी प्रसाद महतो , खोरठा आधुनिक लोककलार बिनोद कुमार महतो ‘रसलीन’ खोरठा लोकगायक अशोक कुमार महतो । लुआठी पत्रिका के संपादक गिरीधारी गोस्वामी ‘आकाश खूँटी’ आदि ने शुभकामना और बधाई दी ।।