दूरदर्शन की नयी दिशायें कार्यक्रम में नजर आयेंगे चर्चित लेखक देव कुमार

author
0 minutes, 3 seconds Read

राँची  कहते हैं, अगर कुछ कर गुजरने का जज्बा हो तो कुछ भी नामुमकिन नहीं। कुछ ऐसा ही कर दिखा चुके हैं राँची के युवा लेखक देव कुमार। देव कुमार ने झारखण्ड के लुप्तप्राय आदिम जनजाति बिरहोर द्वारा प्रयोग किये जाने वाले शब्दों और ध्वनियों को संकलित करते हुए बिरहोर-हिंदी-अंग्रेजी शब्दकोश की रचना कर देश में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया था। यही कारण है कि एक बार फिर दूरदर्शन की नयी दिशायें कार्यक्रम में उन्हें विशेष रूप से आमंत्रित किया गया है।

ज्ञात हो कि बिरहोर एक आदिम जनजाति है जो झारखण्ड के हजारीबाग, कोडरमा, गिरिडीह, चतरा, रामगढ़, राँची एवं सिमडेगा में निवास करती है। जनगणना 2011 के अनुसार, झारखंड राज्य में इनकी जनसंख्या मात्र 10,726 है और ये जनजाति अपने भाषा-संस्कृति को बचाने के लिए संघर्षरत है।

Whatsapp Group

लेखक श्री देव कुमार द्वारा इस शब्दकोश के माध्यम से बिरहोर समुदाय की भाषा और संस्कृति को संरक्षित करने का प्रयास किया गया है। लेखक द्वारा बिरहोर समुदाय के बीच जाकर उनके धरातलीय विशेषताओं को समेटते हुए पुस्तक की रचना की गयी है, जिससे मौलिक शब्दों व पृष्ठभूमियों का समावेशन संभव हो पाया है। संभवतः यह झारखण्ड की पहली ऐसी पुस्तक है जो आपको लुप्तप्राय बिरहोर भाषा एवं संस्कृति से अवगत कराने हेतु प्रयासरत होगी।

See also  पुलिस ने जुआ अड्डे से किया 8लाख बरामद ,6 दरोगा ने 6.59 लाख खा गए, हिस्सा नहीं मिलने पर 1 दरोगा ने भाड़ा फोड़ा

*आखिर क्या खास है शब्दकोश में*

पुस्तक में बिरहोर जनजातियों द्वारा दैनिक जीवन में बोलचाल में प्रयुक्त होने वाली शब्दावलियों का समावेश किया गया है। शब्दकोश को कुल 22 अध्यायों में विभक्त किया गया है। स्कूली बच्चों की मनोवृत्ति का ख्याल रखते हुए विशिष्ट शब्दों को रंग-बिरंगे सुंदर चित्रों से प्रस्तुत किया गया है जो लेखक की कल्पनाशीलता और समुदाय के प्रति संवेदनशीलता का परिचय कराती है।

देश-विदेश के लेखकों, विकास कार्यों से जुड़े प्रोफेशनलों, साहित्यकारों, भाषा विद्वानों एवं शोधकर्ताओं द्वारा पुस्तक की सराहना की जा चुकी है। यह पुस्तक की सराहना चर्चित साहित्यकार व विद्वान खोरठा साहित्यकार गीतकार विनय तिवारी, दिनेश दिनमणि, दीपक सवाल,डॉ वीरेंद्र महतो, डॉ नेत्रा पौडयाल, डॉ गौतम इत्यादि द्वारा की जा चुकी है।

See also  झारखंड शिक्षक नियुक्ति नियमावली में भेदभाव, राज्यपाल के पास पहुंचा मामला–

राज्य सरकार द्वारा ऐसी पुस्तकों को शैक्षणिक पाठ्यक्रमों में शामिल करने से यह विलुप्तप्राय बिरहोरों की मातृभाषा के संरक्षण में मील का पत्थर साबित होगी। “शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा मातृभाषा को बढ़ावा देने हेतु राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020 लागू की गई है ।

यूनेस्को द्वारा बिरहोर भाषा को गंभीर खतरे की भाषा में शामिल किया गया है। अतः इस शब्दकोश को प्राथमिक कक्षाओं में अवश्य पढायी जानी चाहिए। देव कुमार द्वारा बिरहोर भाषा के संरक्षण हेतु दीवाल लेखन के माध्यम से भी अनूठा प्रयास किया गया है जिसकी जितनी भी सराहना की जाये कम है।

Share this…

Similar Posts

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *