राँची Jharkhand assembly scam झारखंड विधानसभा एक बहुत बड़ा घोटाला सामने आया था। उस घोटाला का नाम था झारखंड विधानसभा नियुक्ति घोटाला।
झारखंड विधानसभा नियुक्ति घोटाले की जांच के लिए वर्ष 2017 में गठित की गई थी जस्टिस विक्रमादित्य आयोग।
विक्रम आयोग को तत्कालीन सरकार को रिपोर्ट और अपनी सुझाव सौपना था। आयोग ने इसकी वजह राजभवन को वर्ष 2018 में रिपोर्ट सौंपी।
विक्रमादित्य आयोग की सुझाव पर तत्कालीन महाधिवक्ता अजीत कुमार का सुझाव मांगा गया तो उनका निष्कर्ष स्पष्ट नहीं था।
उस समय के महाधिवक्ता ने सुझाव दिया कि वह सच नहीं है तो मुकदमा नहीं किया जा सकता । झारखंड विधान सभा में किए गए कर्मियों को सर्विस रूल के तहत हटाना ठीक नहीं होगा।
विधान सभा सचिवालय के मुताबिक महाधिवक्ता ने इसका जिक्र किया कि उन्होंने रिपोर्ट देखा नहीं है।
3 महीने में आएगी आयोग की रिपोर्ट
नियम के अनुसार 6 माह के भीतर आयोग को रिपोर्ट सौपना था। और इसे विधानसभा के पटल पर भी पेश किया जाना था।
आयोग के सुझाव और निर्देश में स्पष्ट नहीं होने के कारण राज्य सरकार ने 1 सदस्यीय न्यायिक आयोग का गठन किया है। सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति एसजे मुखोपाध्याय न्यायिक आयोग के अध्यक्ष बनाए गए हैं।
आयोग को 3 माह में सरकार को रिपोर्ट सौंपना है। अधिसूचना के मुताबिक आयोग जस्टिस विक्रमादित्य प्रसाद की अध्यक्षता में गठित एक सदस्यीय जांच आयोग द्वारा झारखंड विधान सभा सचिवालय में नियुक्ति और प्रोन्नति में बरती गई धांधली के आलोक में समर्पित जांच प्रतिवेदन मैं समाहित जटिल विधि एवं तथ्यों के प्रश्नों का समाधान कर प्रतिवेदन झारखंड विधानसभा अध्यक्ष के समस्त प्रस्तुत किया जाएगा।
पद नहीं होने के बावजूद कर दी गई थी बहाली
झारखंड विधानसभा में रिक्त पद नहीं थे। इसके बावजूद नियुक्तियां कर भर्ती ले ली गई थी। नीतियों में रोस्टर का पालन नहीं करते हुए पसंद के आधार पर निर्णय हुआ था।
नियुक्तियों में जमकर पक्षपात हुआ। रिपोर्ट में तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष इंदर सिंह नामधारी और आलमगीर आलम के खिलाफ गंभीर टिप्पणी है।
जबकि पूर्व विधानसभा अध्यक्ष शशांक शेखर भोक्ता को प्रोन्नति देने में हुई गड़बड़ी का दोषी पाया गया है।
न्यायिक आयोग ने इंदर सिंह नामधारी और आलमगीर आलम के खिलाफ अपराधिक मुकदमा दर्ज करने की अनुशंसा की थी।
आयोग का निष्कर्ष था कि गलत आधार पर नियुक्तियां हुई। झारखंड विधानसभा की नियुक्ति एवं प्रोन्नति में छेड़छाड़ की गई नियमावली में छेड़छाड़ की गई। कुछ शब्दों को जोड़कर कर्मचारियों को प्रोन्नति दे दी गई।
खाली उत्तर पत्र लाइसेंस नहीं फिर भी बहाली
सबसे ज्यादा धांधली चतुर्थवर्गीय कर्मियों की नियुक्ति में की गई थी। विक्रमादित्य प्रसाद आयोग ने अपनी रिपोर्ट में इसे अंकित किया था ।और टिप्पणी की थी।
आयोग का निष्कर्ष था कि चतुर्थवर्गीय संवर्ग की नियुक्तियों में नियमों को पूरी तरह अनदेखी हुई। उत्तर पत्र खाली रहने के बावजूद नियुक्ति कर ली गई।
ड्राइवरों की नियुक्ति में सबसे अनियमितता हुई। ड्राइविंग लाइसेंस वालों की नियुक्ति भी ड्राइवर पद के लिए की गई
नियुक्ति पत्र मिलने के दिन ही कर दिया योगदान पूर्व विधानसभा अध्यक्ष इंदर सिंह नामधारी ने 274 एवं आलमगीर आलम ने अपने कार्यकाल में 324 नियुक्तियां की थी।
Qइसमें प्रभावी नेताओं के करीबियों को ज्यादा ध्यान दिया गया। एक खास इलाके के लोगों की बहाली हुई।
विक्रमादित्य रिपोर्ट के मुताबिक पलामू के 12 लोगों को डाक से नियुक्ति पत्र भेजा गया। जो उन्हें दूसरे दिन ही मिल गई। उसी दिन सभी लोगों ने योगदान भी दे दिया।
राज्यपाल ने अनुसेवक के 75 पद स्वीकृत किए थे। अधिकारी अमरकांत झा ने 150 पदों पर नियुक्तियां कर दी थी।।