महा आकाश के ग्रह नक्षत्रों की खोज लेने के लिए ज्योतिर विद हमेशा से आग्रह ही रहते हैं। पठानी सामंतों की तरह बांस की लकड़ी हो या फिर दूरबीन यंत्र के जरिए वह नए नए ग्रह नक्षत्रों के आविष्कार के लिए लगे रहते हैं। 21वीं सदी में रूस और अमेरिका की सरकारें इसके लिए अर्थ खर्च करते हैं। अमेरिका में स्थित नेशनल एयरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन ( NASA ) , पिछले 4 साल से केप्लर महाकाश यान अंतरिक्ष में भेजा है। अब तक वह 1004 नए ग्रहों की खोज कर चुका है। पृथ्वी जैसे दो नए ग्रह अविश कृत होने से और यह बात मीडिया एवं संवाद में प्रचार होने से सिर्फ ज्योतिर विद ही नहीं बल्कि आम आदमी भी बहुत खुश है। उन दो ग्रहों का नाम कैपलर 438b एवं 422 भी रखा गया है पृथ्वी की तरह होने के कारण उसमें मनुष्य जैसे जीव हो सकते हैं या फिर मनुष्य वहां रह पाएंगे। पृथ्वी और प्रदूषित हो चुका है। हत्या तथा दुर्नीति से मानसिक स्तर पर एवं वायुमंडल के ऊपर स्थित ओजोन परत के विभिन्न प्रकार के प्रक्षेपास्त्र परीक्षण के चलते ध्वंस होने से वातावरण और भी ज्यादा विषाक्त हो रहा है कहीं और चले जाने से मनुष्य थोड़े शांति में रह सकता है । आखिर कहां जाए ??
चांद मंगल में यदि जल की व्यवस्था हो जाए तो वहां जाने से अच्छा होता। कुछ संस्थाएं मंगल ग्रह में रहने वाले इच्छुक व्यक्तियों के लिए आरक्षण भी प्रारंभ कर दिए हैं । ठीक उसी समय केप्लर समाचार दे रहा है कि पृथ्वी के आयतन से इन दो ग्रहों का आयतन लगभग ढाई गुना से भी ज्यादा है साथ ही पृथ्वी की तरह पथरीला भी है। हो सकता है कि पानी भी हो। वास्तव में अंतरिक्ष में कितने ग्रह नक्षत्र हैं? सारे ग्रह क्या पृथ्वी की तरह ही है? वहां के लोग क्या मनुष्य के जैसे हैं? इस विषय पर अधिक तथ्य पाने के लिए ज्योतिर् विद अपना काम जारी रखे हुए हैं।
श्री श्री ठाकुर अनुकूल चंद्र इस बारे में क्या कहते हैं यह जानने का प्रयास किया जाए। ” Cosmic cradle” एक शोध मुल्क पुस्तक अमेरिका में सन 1999 में प्रकाशित हुई है। ” Cosmic cradle by Elizabeth Carman and Neil J Carman, Sunstar Publishing Limited, 1999-US” इस पुस्तक में आत्मा की स्थिति और गति के ऊपर अनेक तथ्य दिए गए हैं। वह लोग श्री श्री ठाकुर अनुकूल चंद्र जी की उक्ति को उद्धृत करते हुए लिखे हैं जिसका हिंदी अनुवाद कुछ इस प्रकार का है – ठाकुर इस जीवन के आने से पूर्व से अब तक अगोचर उच्च स्थान में थे उनके आने का कार्यक्रम अब तक के आना विस्तृत स्वर्गीय नक्षत्र मंडल से होते हुए प्रारंभ हुआ। उसके बाद वे हजार दो हजार नहीं बल्कि 44000 ग्रह नक्षत्र को अतिक्रमण करते हुए आए। उन्होंने देखा कि लाख-लाख सूर्य एक वृत्त सूर्य के चारों तरफ घूम रहे हैं। उन्होंने यह भी देखा कि ग्रह मंडल का एक ग्रह टूटकर खंड विखंडित होते हुए बना। अनेक ग्रह मंडलों के बारे में विज्ञान अब तक अज्ञ है। उनको अब तक स्पष्ट रूप से याद है कि केंद्र में एक असाधारण नक्षत्र मंडल है जिसके चारों ओर चार नक्षत्र हैं। यह 4 नक्षत्र अब केंद्र के नक्षत्र के निकट होते है तो उनका रंग लाल दिखाई देता है दूर होने पर नीला हो जाता है। ठाकुर को पता चला कि इस गमन प्रत्यागमन को ज्योतिर्विज्ञान में डॉपलर इफेक्ट ( DOPPLER EFFECT) कहां जाता है। पृथ्वी की ओर आते समय वे विभिन्न ग्रहों पर थोड़े समय ठहर कराएं। यह पहुंचते ही उस ग्रह के लोगों ने उनका बड़े उत्साह के साथ स्वागत किया। इन ग्रहों का वातावरण पृथ्वी के वातावरण से भिन्न है इसलिए वहां के लोग पृथ्वी के लोगों की तरह नहीं है वह जब एक ग्रह में विदा लेते हैं तो वहां के लोग करूं संगीत जाते हैं यह विच्छेद उनके लिए अत्यधिक कष्टदायक था। अंतिम परिवार में हमारे सौरमंडल में आलोक के माध्यम से आकर सूर्य के अंदर रहते हैं सूर्य बाहर से गर्म किंतु अंदर से अत्यंत शीतल है उसके अंदर आते समय रास्ते के बाई और बाकी अंधकार और दक्षिण की ओर एक सरल रेखा का रास्ता है जिससे 44000 ग्रहों को भी देख सकते हैं।
श्री श्री ठाकुर अनुकूल चंद्र ने कभी भी विज्ञान की किताबें नहीं पड़ी। उन्होंने जो डॉपलर इफेक्ट की बात कही है वह मस्तिष्क को आश्चर्यचकित करने वाली है क्योंकि उन्होंने उस प्रक्रिया को स्वयं अनुभव अनुभूति के माध्यम से बोध किया है ना कि कहीं पर उसे पड़ा है ।
मनुष्य के अधिकार प्रवणता के कारण चंद्र और मंगल ग्रह बार-बार मनुष्य विहीन हुआ और मनुष्य के साथ सारे महाकाश यान एक समय वैभवशाली देश रूस एवं अमेरिका के द्वारा प्रेरित हुआ है। इंटरनेट में उपलब्ध समाचार के अनुसार रूस अमेरिका के बाद चीन आदि देशों ने भी चांद पर महाकाश यान भेजा है। जो तथ्य मिला है वहां भूख पृष्ठ के नीचे अत्यंत घना पदार्थ संग्रहित है।
चांद को महा आकाश यान के प्रेरणा संवाद से इस्कॉन के प्रतिष्ठा का श्रीमद् भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद अत्यंत दुष्ट है। उन्होंने कहा है कि पृथ्वी के बाद स्वर्ग लोक में चांद अवस्थित है उसके बाद महा लोक और सत्य लोक । भूलोक में बसने वाले प्राणियों के लिए स्वर्ग लोक में रहना संभव नहीं होगा क्योंकि वहां का वातावरण अलग है वैदिक शास्त्र के अनुसार चंद्रलोक में रहने वालों की परम आयु 10000 वर्ष है। वहां का 1 दन यहां के 6 महीने के बराबर है। चंद्रमा पर पहुंचने से मनुष्य की आयु बढ़ नहीं जाएगी। कितना अर्थ इसमें बर्बाद हो रहा है। बल्कि पृथ्वी के अनुरूप देशों में खाद्य शिक्षा स्वास्थ्य सेवा आदि के अभाव में कितने मनुष्य अपने प्राण त्याग रहे हैं। उनके लिए तुम्हारा कोई कर्तव्य नहीं? उसी प्रकार मंगल ग्रह को महाकाश यान यादी भेजना उसके ऊपर शोध के लिए जो अर्थ खर्च हो रहा है उसकी आवश्यकता को लेकर उस समय के राष्ट्रपति जॉन एफ कैनेडी ने सवाल उठाया था। जिसका उत्तर मिला दवाई बनाने में यह सहायता करेगा। इन सब के बावजूद मार्स मिशन सिर्फ अमेरिका में ही नहीं बल्कि दूसरे देश को व्यापक मंगल ग्रह में रहने के लिए कुछ संस्थाएं अग्रिम आरक्षण कर रहा है।
अंत में श्री श्रीठाकुर ग्रह अंतरतक के शोध और यात्रा के बारे में जो कहे हैं मुझे लगता है वह बहुत गुरुत्व पूर्ण है। उसका कुछ अंश इस प्रकार है – सर्वत्र मेरा घर है। पृथ्वी के अतिरिक्त विश्व ब्रह्मांड के ग्रहों में तारों में छाया पद के स्तरों में हमारा घर है। साधक अपनी अनुभूति के द्वारा इसका आभास पाते हैं। अपने अंदर यह सब है सिर्फ इस तरह नहीं बल्कि वास्तव में यह सब चीजें हैं। यह सारे स्थान है और इन सारे स्थानों को शायद ऐसा बोध किया जाता है जिस प्रकार हम उन्नत हो रहे हैं स्थापित हो रहे हैं और विचरण कर रहे हैं। उसके साथ ही वैज्ञानिक उपाय से भी स्कूल भाव से संपर्क रखा जाता है। मान लो जेल के अंदर अनेक जीवाणु होते हैं। जल भंडार के अंदर भी जीवाणुओं का ब्रह्मांड है। यह तुम भी अनुभव कर सकते हो। साधना और नियमित अनुशीलन के द्वारा चख्यू को असाधारण शक्ति संपन्न कर सकते हो बना सकते हो या फिर एक अच्छा माइक्रोस्कोप जुगाड़ कर सकते हो वैज्ञानिकों को अत्यंत सूक्ष्म और अधिक शक्ति संपन्न किया जा सकता है विवर्तन के वर्तमान स्तर में अत्यंत सहज और स्वाभाविक हुआ है शायद पहले वह मनुष्य के स्वप्न और कल्पना में अगोचर था। उसी प्रकार लाखों वर्षों के बाद जो स्वाभाविक हो उठेगा शायद आज वह हमारे स्वप्न और कल्पना से अगोचर है। इन सब के मूल में चाहिए प्रयोजन सामाजिक दृष्टि संपन्न एक व्यक्ति जिसे ऋषि कहा जाता है सिर्फ वही सब को सुसंगत और एक का भी मुखी बना दे सकते हैं ।
रेफरेंस : आलोचना प्रसंगे – 3 !!
श्री नृसिंह त्रिपाठी जी की लिखी हुई पंक्तियां!!