DARWIN के विकास की theory एवं शास्त्र !!!

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पाश्चात्य जगत के पास कोई relevant text न होने के कारण वे बहुदा भारीतय ऋग्वेदीय साहित्य को विज्ञानं के प्रकाश में “irrelevant” मानते हैं । उनका यह मानना है की मनुस्य का क्रम विकास Darwin’s theory के आधार पर हुआ है . परन्तु सत्य कहीं अधिक विस्तृत और गंभीर है . आइये आज इस विषय पर बात करते हैं .

Darwin’s Theory of Evolution !!

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चार्ल्स डार्विन के विकास की सिद्धांत के अनुसार मानव या किसी भी अन्य जीवंत प्राणी का स्वरुप प्रकृति के प्रभाव से , संघर्ष के कारण , बचने की कला को धारण करते हुए विकाश के क्रम में निरंतर आगे बढ़ता है . हम इसको इस तरह से समझते हैं –

girrafe का DNA हिरन से मिलता है । अर्थात जिराफ़ हिरन का ही वंशधर है । खाने की अनुपस्थिति के कारण हिरन ऊँचे पेड़ों पर लगे पत्तों तक पंहुचने के लिए अपना गर्दन खींचने लगा । 3 generation me यह आदत 50% स्थितप्रज्ञ हुई । 8 पीढ़ीओं तक ऐसा करते रहने के कारण आज हम लम्बी गर्दन वाले हिरण अर्थात जिराफ़ को देख पाते हैं । यह कुछ 200 लाख साल पहले हुआ .

यहाँ पर ध्यान देने की बात है की डार्विन का सिद्धांत एक ही जगह (galapagos island) के ऑब्जरवेशन पर आधारित है । वास्तव में पृथ्वी के विभिन्न स्थानों में पर्यावरण “different” होने के कारण विकाश का क्रम भी अलग रहा है ।

भारतीय शास्त्र !!

भारतीय शास्त्र में समय काल 4 युगों में विभाजित है ; कुछ इस प्रकार से –

१। सत्य युग – कुल 1728000 साल की अवधि ।

२। त्रेता युग – 1296000 वर्षों की अवधि । मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम चंद्र इसी युग के सेष में जन्म ग्रहण करते हैं । वामन अवतार इस युग के शुरुआत के समय में ।

३। द्वापर युग – 864000 वर्षों की अवधि । लीला पुरुषोत्तम श्री कृष्ण का युग ।

४। कली युग – 432000 वर्षों की अवधि । युग पुरुषोत्तम श्री श्री ठाकुर अनुकूल चंद्र का जन्म युग के प्रारम्भ (1888 CE) में ही । अंतिम अवतार कली युग के सेष में ।

भारतीय मत वैज्ञानिक पुस्टीकरण के अनुरूप क्यों नहीं है ?? वैज्ञानिकों के हिसाब से मानव प्रजाति की उत्त्पत्ति 315000 वर्षों पहले हुई । तो फिर क्या सनातन साहित्य मिथ्या है ?? कल्पना मात्रा है ??? ऐसा नहीं है ।

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वैज्ञानिकों ने सृष्टि के एक या दो स्थानों में हुए विकाश को अपने सीमित चाख्यो से ही जाना एवं पढ़ा है . आर्य ऋषिओं ने ध्यान के माध्यम से जो जाना है उसे ही उल्लेख किआ है ।

वास्तव में विश्व में सभी आर्यों की उत्त्पत्ति , आज से करोड़ों वर्षों पहले ही हुई है । उत्तरी ध्रुव के समीप एक द्वीप “Nova zemlaya” , उस समय “eternal spring” से परिपूर्ण था . वहां प्रकृति परिपोषनी होने के कारण “Hyperboreans” की एक मानवीय सभ्यता फल फूल रही थी । इन “Hyperboreans” की व्याख्या पंडित बालगंगाधर तिलक जी ने अपने पुस्तक “The Arctic Home in Vedas” में की है । रोमन एवं ग्रीक साहित्य ले ली गयी कुछ पंक्तियाँ – “Their land was in the Ocean and was similar in size to Sicily: Leto, mother of the God Apollo, was born there. This explains the very close tie linking Apollo with these people, and the presence in that land of a magnificent spherical temple dedicated to the God. Hyperboreans lived in perfect happiness ignoring sorrow, illness and death.” Hyperborea का मूल सब्द वराह है , अथवा ” वराह की जगह ” . इसका सामंजस्य होता है सत्य युग के वराह अवतार से जब हिरण्याक्ष वध हुआ था और “coincidence” की बात है की यह एक महाद्वीप ही था । रोमन साहित्यकार “pliny” बतलाते हैं – “In that country is located one of the Poles around which the cosmos revolves. This is a sunny, temperate land, free from any harmful air; here Hyperboreans live in woodland and forests and they do not know any struggle or disease.”Hyperboreans ऊँचे कद वाले , सुन्दर आँखों वाले , सत्य प्रेमी , न्याय प्रिय , धर्म के पालक एवं संरक्षक थे । ये सभी गुण हम सत्य युग में पा सकते हैं । ऊपर सभी तथ्य को मिलाया जाए तो हम जान सकते हैं भारतीय शास्त्र सभी पहलुओं पे खरा उतरता है ।

समय क्रम में पृथ्वी का वातावरण बदलता है , और ऐसे ही किसी बदलाव के कारण उत्तर मेरुध्रुव बर्फ में बदलने लगा । Hyperboreans बाध्य हुए “migration” के लिए और दाल बना बना कर पृथ्वी के प्रत्येक कोने में विचरने लगे । एक दल “ural” पर्वत श्रृंखला जो रूस में है उसे क्रॉस करते हुए ईरान में बस गया , और यहीं से शुरू हुई भारतीय आर्यों की गाथा । भारत में प्रकृति का प्राचुर्य होने के कारण यहाँ जो आर्य बसे उन्हें “struggle for existence” कम करना पड़ा । उनका सारा ध्यान केन्द्रायित हुआ इस सृष्टि के अनंत रहस्य को जानने में । इसी ज्ञान से वेदों की उत्त्पत्ति हुई , उपनिषद्स एवं अन्य सभी साहित्य की । पृथ्वी के बाकी जगहों पर प्राकृतिक परिवेश “suitable” नहीं होने के कारण वहां बचने का संघर्ष “prominent” रहा जिससे की उनमे ईस्वरीय वृत्तियाँ कम होने लगी । इससे क्रोध , अहम् , हिंसा द्वेष जैसे भावनाओं की सृष्टि हुई । सत्त्व गुण का प्रभाव काम होने लगा । इसीलिए भारतीय आर्य विश्व के सर्वश्रेष्ठ प्रजाति में से हैं , क्यूंकि सत्त्व का परिमाप ही विकाश की श्रेणी में मनुस्य को “superior” बनता है ।

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यही है मानव सभ्यता की सनातन उत्त्पत्ति जिसे जानने के लिए ईस्वरीय चख्यु का प्रयोजन है । आर्य ऋषिओं ने भक्ति एवं ध्यान के माध्यम से इस चख्यु को पाया था । वैज्ञानिक “rational definite” प्रोपोज़िशन्स से काम ही जान पाएंगे .

कुछ अन्य पंक्तिया उदहारण स्वरुप !!

उत्तमम राक्षसवासं हनुमान वैलोक्यं

परिक्षिप्तम असम्बद्धं राक्षसमानाम उडायुदयः

चतुर विसानेर द्विरादयः त्रिसानेर तथैव च :

आजशदाताह लक्ष्मीवान राक्षशेंद्रानिवेसनं

 Hanuman the glorious one neared and observed the best residence of Rakshasas and the house of Ravana, containing elephants with four tusks and also those with three tusks, those with two tusks and still not crowded. It was protected by soldiers bearing raised weapons। { वाल्मीकि रामायण ; सुन्दर काण्ड 4.27.12}यहाँ 4 सूंड एवं 3 सूंड घाटियों की व्याख्या है । वैज्ञानिक संसोधन के अनुसार 4 सूंड वाले हाथी “Gomphotheres” की प्रजाति के थे और कुछ 120 लाख – 50 लाख वर्षों पहले पृथ्वी पर विचरण करते थे ।

श्री हनुमान यह सब लंका में कैसे देख पाए थे ?? आप ही “decide” करें !!!!

 

क्रेडिट : श्री गुरुदेव !!!

 

 

 

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