District and session judge dismissed जिला न्यायायाधीश को बर्खास्त कर दिया गया है। न्यायाधीश को बर्खास्त करने के लिए अनुशंसा उच्च न्यायालय ने की थी। जिसके आधार पर प्रमुख सचिव विधि एवं विधायी कार्य विभाग ने आदेश जारी किए गए है।
गणेश राम बर्मन छत्तीसगढ़ उच्चतर न्यायिक सेवा के सदस्य थे। वर्तमान में उनकी पदस्थापना जिला एवं सत्र न्यायाधीश एफटीसी के पद पर जशपुर में थी। उनकी सेवाकाल की जांच कर उच्च न्यायालय ने इनकी सेवा समाप्त करने की अनुशंसा राज्य शासन के विधि एवं विधाई कार्य विभाग को की गई थी।
हाईकोर्ट द्वारा की गई अनुशंसा को स्वीकार करते हुए छत्तीसगढ़ उच्चतर न्यायिक सेवा नियम 2006 के नियम 9 (4) के तहत अतिरिक्त जिला और सत्र न्यायाधीश (एफटीसी) जशपुर की सेवाएं तत्काल प्रभाव से समाप्त करने के निर्देश प्रमुख सचिव विधि एवं विधायी कार्य विभाग रामकुमार तिवारी ने जारी किए हैं।
छत्तीसगढ़ में एक न्यायाधीश को दोबारा बर्खास्त करने की कार्यवाही न्यायविदों के बीच चर्चा का विषय बन गई है। जशपुर में फास्टट्रैक कोर्ट में पदस्थ ADJ गणेश राम बर्मन को हाई कोर्ट से राहत मिली थी मगर हाईकोर्ट की ही अनुशंसा पर विधि एवं विधायी विभाग ने उन्हें फिर से बर्खास्त कर दिया है।
क्यों किया गया जिला जज को बर्खास्त
विधि एवं विधायी विभाग द्वारा गणेश राम बर्मन को रायपुर में अतिरिक्त जिला न्यायाधीश के पद पर नियुक्त किया गया था।
प्रोवेशन पीरियड के दौरान उनके और दो अन्य न्यायिक अधिकारियों के खिलाफ एक गुमनाम शिकायत की गई थी। गणेश राम बर्मन को शिकायत पर अपना स्पष्टीकरण प्रस्तुत करने का निर्देश दिया गया था।
बताया जाता है कि यह मामला किसी आरोपी की जमानत से जुड़ा हुआ था। संबंधित आरोपी की जमानत अर्जी दो बार निरस्त करने के बाद उसे तीसरी बार जमानत दे दी गई थी। इसी मामले की शिकायत के बाद जांच हुई, जिसमें न्यायाधीश गणेश राम बर्मन ने अपना स्पष्टीकरण प्रस्तुत भी किया, लेकिन उनकी सेवा समाप्त कर दी गई।
न्यायाधीश ने ली न्यायालय की शरण
अपनी बर्खास्ती के खिलाफ एडीजे ने याचिका दायर कर कहा था कि बर्खास्तगी की दंडात्मक प्रकृति को देखते हुए कम्प्लीट डिपार्टमेन्टल जांच का पालन करना चाहिए था, साथ ही राज्य शासन की स्थायी समिति को याचिकाकर्ता की सेवाओं को समाप्त करने की सिफारिश करने का अधिकार नहीं है।
सुनवाई के बाद छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने बर्खास्त अतिरिक्त जिला न्यायाधीश को राहत दिया और एडीजे का बर्खास्तगी आदेश निरस्त कर दिया। कोर्ट के मुताबिक बर्खास्तगी अधिकार क्षेत्र से बाहर व बिना प्रक्रिया की गई थी।
हाईकोर्ट ने सिंगल बेंच के आदेश को यथावत रखते हुए कहा कि “हाईकोर्ट चाहे तो मामले के परीक्षण के बाद प्रोवेशन पर उचित निर्णय ले सकता है.”