अक्सर इस्लाम में काफिर का जिक्र किया गया है जिसको लोग एक विकृत मीनिंग देकर बतलाते हैं की इस्लाम को छोड़कर बाकी जो कोई भी हैं उन्हें काफिर कहा गया है । परन्तु वास्तव में ऐसा नहीं है ।
काफिर का संस्कृत संस्करण म्लेच्छ है । वास्तव में जो लोग रिलिजन से बंध कर नहीं चलते उन्हें म्लेच्छ बताया गया है। वे लोग जीवन वर्धन के कौशल को नहीं जानते । एक म्लेच्छ इस्लाम में भी हो सकता है , हिन्दुओं में भी और बाकि मतों के लोगों में भी ।
म्लेच्छ लोग आचरण विच्युत हो कर चलते हैं . उनके जीवन में कोई डिसिप्लिन न होने के कारण वे समाज को बाँध कर नहीं रख सकते । विकृत विचार धरा को लेकर समाज को युद्ध एवं रोग की तरफ धकेलते हैं । उनका अस्तित्वा ही anti social होता है ।
म्लेच्छों की उत्त्पत्ति वास्तव में दो तरह से होती है .
१। आचरण से विच्युत लोग म्लेच्छ की श्रेणी में रहते हैं ।
शास्त्रों में है ” आचार्य पैरामो धर्म स्रत्यक्त्या स्मार्त ईवा च , तस्मिन्डमास्टो सदा युक्तो नित्य आत्मबान द्विजा ” . अर्थात जो लोग आचरण से चलते हैं ( यहाँ आचरण का तात्पर्य प्रकृति क नियमो से हैं ) वे परम धर्म को पालन करते हैं और इसी करने के माध्यम से उनका तेज एवं ओजस सर्वदा वृद्धि युक्ता रहता है ।
फिर है ” आचरण विच्युतो द्विजा न वेद फलम लाभस्तु ते , आचरण तू सदा युक्तो सम्पूर्ण वेद फलम भवेत् ” अर्थात आचरण से विच्युत होने पर प्रकृति दण्डित करती है रोग , शोक , व्याधि एवं ज़रा क माध्यम से । वास्तव में जहां कोई suffer करता है , उसने कहीं न कहीं प्रकृति क नियमो को भांग किआ है ।
इसीको म्लेच्छाचार कहते है ( आचरण से म्लेच्छ ) .
२। बनसानुक्रमकीटा से म्लेच्छ ।
वास्तव में भारतीय मूल क ऋषिओं ने विवाह क मर्यादा को समझते हुए , विवाह संबद्धि नियम बनाये जिसका बहुत ही गंभीर वैज्ञानिक पुस्टीकरण है . हम लोग जब गाय , या कुत्ता खरीदते हैं तब नस्ल (breed) देखते हैं । उसी तरह मनुस्य विवाह में भी नस्ल का प्रयोजन है। शास्त्रों में वर्णाश्रम धर्म का प्रयोजन है । इसके अनुसार पुरे ब्रह्माण्ड की सृष्टि सत्त्व , राजस एवं तामस क आधार पर हुई । मनुस्य अपने कर्मा एवं चिंता क आधार पर अपने घर , कुल में जनम लेता है । प्रकृति क अनुसार सत्व गुण विवर्तन (evolution) की श्रेणी में ऊपर आता है , उसके पश्चात ही राजस एवं सबसे नीचे तामस । जो लोग सत्व गुनी है वास्तव में ेवोलुशन क स्टार में ऊपर आते हैं , उसके पश्चात राजसिक एवं अंत में तामसिक .
विवाह क प्रयोजन में जब एक सत्व गुनी कन्या का अपने रजो या तमो गुनी पुरुष से मेल होता है , इससे वार्ना संकर की उत्त्पत्ति होती है जो की जन्म से म्लेच्छा होते हैं । उनके पास बचने और बढ़ने का विपरीत कौशल होता है । वे हमेशा “anti-dharma” रहेंगे ही । उन्हें बदला नहीं जा सकता (genes को कैसे बदलेंगे ?) . वे हुए वंस से म्लेच्छा ।
इसका जीवंत उद्धरण “Adolf Hitler” .Hitler के पिताजी protestant अथवा माता catholic थी । Christianity में कैथोलिक ” आचरण ” को मानते हैं , एवं protestant केवल belief पर ही ज़ोर देते हैं । तो logically कैथोलिक का सत्त्व गुण प्रोटोस्टेंट से ज्यादा हुआ । इसी से म्लेच्छों की उत्त्पत्ति होती है ।
यही म्लेच्छ या काफिर का वास्तव अर्थ है । ऐसे लोग हिन्दू , इस्लाम , क्रिस्चियन , सभ्यों में मिलेंगे .