“ देख बार बार बोल रहा हूँ , मन को कीर्तन में मतवाला बनाये रखो ; नहीं तो सब ( रोग , शोक , पीड़ा , भय ) ग्रास करेंगे । कीर्तन में एक शक्ति है । मन को उच्चा ले जाता है । कीर्तन मृगनाभि है ( कस्तूरी जो मनुस्य के जीवन शक्ति को वर्धित करती है ) , कीर्तन “picric acid”(TNT बम को शक्ति प्रदान करती है ) ” – श्री श्री ठाकुर अनुकुलचंद्र ( भाववाणी अवस्था )
युवा पीढ़ी या अन्य कोई भी नित्य प्रतिदिन अगर कीर्तन में मतवाला हो उठे , भक्ति करे , तो उनके जीवन के सभी समस्याओं का समाधान वह निकाल सकते हैं । इसलिए ” उतिष्ठत जाग्रत , प्राप्य बारां निबोधिततात ” – उठो जागो और अपने श्रेष्ठ लक्ष्य ाको प्राप्त करो !! ( स्वामी विवेकानद ) !!