हिन्दू साधारणतः देखा गया है की एक मनुष्य का अपने कुल एवं कल्चर के प्रति एक साइकोलॉजिकल अटैचमेंट रहता ही है , जो उसे बाकि सभी से भिन्न बनाता है । चाहे वह किसी भी प्रान्त देश का ही क्यों न हो , उसके सोचने की क्षमता , इमोशंस , सभी कुछ जिससे एक मनुष्य बनता है , एक प्रेम क आधार पर ही , जो वह जन्मोपरांत अनुभव करते आया है , देखते आया है ।
भारतीय मूल के लोग ऐसे ही एक अटैचमेंट के आधीन होकर , एक सनातन कल्चर , को फॉलो करते आये हैं जिसे आज मॉडर्न हिन्दूइज़्म का स्वरुप मिला है।
वास्तव में हिन्दूइज़्म , एक ओफ्फ्सूट है एक आदि सनातन कल्चर का जिसे हम आर्य सनातन के नाम से जानते हैं । सिर्फ हिन्दुइस्म ही नहीं बल्कि अन्य सभी कल्चर जो भारत की अमर मातृभूमि पर जन्मी हैं , जैसे की बुद्धिज़्म , जैनिज़्म , सिखइज़्म इत्यादि सभी आर्य सनातन से जन्मी हैं। यानि इन सभी कल्चर्स के पिता आर्य सनातन ही हैं और इसलिए हम आर्य सनातन को फादर ऑफ़ रिलीजंस (Father of Religions) भी कह सकते हैं ।
रिलिजन का अर्थ होता है Reli+gare (that which binds ) , यानि जो बांध के रखता है । किससे ?? अपने इष्ट आराध्य देव से । शास्त्रों में है “गुरुर ब्रम्हा गुरुर विष्णु गुरुर देवो महेश्वरा , गुरु साक्षात् परब्रम्ह तस्मै श्री गुरुवे नमः “
अर्थात एक जीवंत इष्ट को केंद्र करके चलने से मनुस्य का चारित्रिक विकाश होता है , अन्यथा म्लेच्छाचार परायण होकर मनुस्य जीवन वर्धन के कौशल को भूलकर नरक पथ का गमन करता है ।
भारतीय आर्य सभ्यता इसी फंडामेंटल प्रिंसिपल से बानी है और जो लोग इस प्रिंसिपल क तदनुकूल होगर पांच अग्नि में स्वयं को प्रतिदिन जलाते हैं , यानि तपस्या परायण होकर चलते हैं वही हिन्दू कहलाने क योग्य हैं। ये पांच अग्नि हैं :
१ एकमेवाद्वितीयम सरणं – मै उस एक एवं अद्वितीय ब्रम्ह के सरन मै जाता हूँ ।
2 पुरबेसमापुरईतारह प्रबुध्धा ऋषयः सरणं – मै उन ऋषिमुनिओं क सरन मै जाता हूँ , जिन्होंने इतिहास की नीव रखी ।
3 तत्त्वात्मानोवर्तिनः पितरः सरणं – मै मेरे अस्तित्व क रचइता मेरे पितरों क सरन मै जाता हूँ ।
4 सत्तानुगुणा वर्णाश्रमः सरणं – मै वर्णाश्रम धर्म क सरन मै जाता हूँ ।
5 पुरबापुरको वर्तमानः पुरुसोत्तम सरणं – मै पूर्व आये है सभी अवतारों को फुलफिल करने वाले वर्त्तमान पुरुसोत्तम की सरन मै जाता हूँ ।
जो लोग इस भावधारा क अनुकूल होकर चलते हैं , जिसके अंतर्गत दीक्षा , शिक्षा , सुप्रजनन एवं सुविवाह आता है , उन्ही का जैविक संस्थिति (genetic heredity) , प्रिज़र्व होकर चलता है पीढ़ी दर पीढ़ी और वे लोग ही आर्य सनातनी हिन्दू कहलाने योग्य हैं ।
इस आइडियोलॉजी के विपरीत जो लोग चलते हैं उन्हें शास्त्रों में मलेछ कहा गया है ।
म्लेच्छ अथवा काफिर कौन हैं ?? उनका समाज में प्रभाव क्या है ?? वैज्ञानिक पुस्टीकरण शास्त्र क साथ ।। आने वाले आर्टिकल्स में हम लोग जानेंगे ।