एक गाय को एक भूखा शेर दौड़ाने लगा..गाय भागते भागते एक नदी के किनारे दलदल में फस गइ. गाय के पीछे पीछे शेर भी वही दलदल में फस गया ! :दोनो में बस दो फीट की दुरीयाँ थी … लाख कोशिश के बावजुद
दोनो निकल नही पाये। शेर ने आखीर में कहा ….जैसे ही ये कीचड सुखे, मैं तुम्हे जरूर खा जाउंगा!
गाय ने जंगल राजा की और देखते हुए कहा- तू अपना सोच । ” मेरा तो एक मालीक है ..और ज्यादा न सही एक कटौरी दुध हर रोज मैं देती आयी हुँ उनको.. देखना कीचड सुखने से पहले मेरा मालिक मुझे ढुंडते हुए बचाने आयेगा… तेरा कौन है ! जो तुझे बचाने आये? तु तो खुदको मालिक समझता है …तेरी अहंकार तुझे दुसरों से प्राप्य मदत से भी बंचित करेगी… “हर कोइ तेरी ये हालत देख कर दुआ नही बददुआ देते जायेगा की तू यहीँ मरें ।
जिन्दगी में तुने वहि कमाई है।
कुछ देर बाद शाम हुइ और अंधेरा हुआ। अंधेरा बढता गया। कुछ समय बाद गाय को पुकारने की आवाज आयी । गाय ने भी अपनी मौजुदगी की आवाज लगायी। कुछ लोग हाथमें लालटिन लेते हुए गाय की तरफ आये। मालिक ने प्रेम भरी स्वर से गाय को पुकारा। सब ने मिलकर उसे बाहर निकाला। शेर देखता रहा ।
आखीर गायका मालिक आकर उसे बचा ले गया….
अर्थात जिसने भी मालिक की चरण ली है , उनपर जीवन न्यस्त कीया है, और उनको रोज कुछ अर्पण करता है उसके हर दुख परेसानी में मालिक उसे मदत करने आयेंगे…कोइ उसका कुछ बिगाड नही पायेगा…
ये छोटी सी कहानी में अगर आप ठुंडोगे तो रामायण महाभारत …. जीने की कला मोक्ष की पथ मिलेगी!
सच्चे सतसंगी का कभी अवन्नती नही होता
एक पैसे ही सही ईषटभृति पंच महायग्य है
कैसे भी लो बीज नाम आपकी कल्याण हो गी ही होगी.