सर्व समस्या का समाधान
तुम जानो इष्ट प्रतिष्ठान !!
मनुस्य जीवन बहुत टेढ़ा मेढ़ा है 1 प्रत्येक मनुस्य अपने कर्मों का फल एहकाल – परकाल भोगता ही है । कर्मों के चक्र से तो तपस्वी पांडव , एवं कुरु वंश के वीर योद्धा न बच सके , हम तो अज्ञानी हैं , तपस्वी भी नहीं हैं ; हमारी क्या सक्षमता ।
तो फिर अपने कृत फल से कैसे बचा जाये ?? क्या करने से मनुस्य सर्व पापों से रहित होकर एक आनंदमय , शांतिमय जीवन व्यापन कर सकता है ??
क्या करने से जीवन के प्रत्येक समस्या ( रोग , शोक , दारिद्र्रता से मुक्ति मिले ) ??
येसु मसीह से पूछा गया था – “GOD is ever merciful ! Then why there is so much of suffering in this world ?? ( इस्वर बहुत दयालु हैं ! फिर विश्व में इतना कस्ट क्यों है ?? “
उत्तर में उन्होंने बतलाया – ” GOD is ever merciful , but he will never interfere in your decisions ( इस्वर बहुत दयालु हैं , परन्तु वे आपके संकल्पों के मध्य टांग नहीं अड़ाते ! ”
वास्तव में हम ज्ञान स्वरुप या अज्ञानता वस् जो भी करते हैं , उसका ही प्रतिफल हम लोगों को समय काल में मिलता है । महाभारत युद्ध के समाप्ति के पश्चात राजा धृतराष्ट्र श्री कृष्णा से प्रसन्न किए – “ मै ही क्यों ?? मै अँधा जन्म लिया !! मेरे सारे पुत्र मारे गए ?? “
श्री कृष्ण बतलाते हैं – हे राजन , आज से 50 जन्म पहले आप , जंगल में शिकार करते समय एक पक्षी के घोंसले में , रजो गुण संपन्न होकर उस पक्षी के आँखों को फोड़ दिए एवं उसके सारे 100 पुत्रों को मार डाला !
धृतराष्ट्र उवाच : 50 जन्मों के पहले किये हुए कर्म का फल अभी क्यों ??
श्री भगवन उवाच : 100 पुत्र पाने के लिए भी तो उतने कर्म फल होने चाहिए ! उन्ही कर्मो का फल आपने इस जनम में भोगा !!
अब हमें भी समझ जाना चाहिए की किस कर्म का फल हमें अवि व्यथित कर रहा है !!
कर्मो के फल से छुटकारा कैसे मिले ??
इस संसार में ज्ञान से ज्यादा पवित्र कुछ भी नहीं । अगर प्रत्येक व्यक्ति को ” सत्कर्म ” का ज्ञान हो जाए तो फिर से वह पवित्र देह धारण कर सकता है । क्या करने योग्य है क्या नहीं , यह भेद केवल युगानुकूल अवतरित पुरुषोत्तम ही बता सकते हैं । इसलिए तो शास्त्र में – “ गुरुर ब्रम्हा , गुरुर विष्णु , गुरुर देवो महेश्वरा , गुरु साक्षात् परब्रम्ह , तस्मै श्री गुरुवे नमः ” .
कबीर भी बतलाते हैं – गुरु गोबिंद दोउ खड़े , काके लागु पाए , बलिहारी गुरु आपनो गोबिंद दियो बताये !
उचित कर्मा का परिमाप है , मनुस्य के मन का केन्द्रायित होना । जब मन केन्द्रायित हो जाता है , तब अंतर में सुषुप्त ज्ञान स्वतः ही शिव जी के जटा से बहती गंगा के अनुरूप , परिपक्वा हो बहने लगता है । तब मन में द्वंद्व नहीं रहता । जो भी मनुस्य करता है वह सत-चित-आनंद को ही प्रश्रय देता है ।
इस युग में मनुस्य केन्द्रायित कैसे हो ??
केन्द्रायित होने का प्रथम सोपान है , जिसके केंद्रित होना है , वैसे व्यक्तित्व का चयन करना । हम किसकी तरह बनना चाहते हैं ? इस प्रश्न के माध्यम से अपने मन मंदिर में आंदोलन सृष्टि करना ।
कलियुग के पुरुषोत्तम श्री श्री ठाकुर अनुकुलचंद्र चक्रबोर्ती से एक अमेरिकन भाई पूछते हैं – ” thakur what is i become concentric to Henry Ford ??
ठाकुरजी बतलाते हैं – then you can become can Ford ; but you cannot become Jesus Christ !! { आप तब हेनरी फोर्ड जैसा बन सकते हैं , परन्तु इससे आप येसु मसीह जैसा नहीं बन सकते } ! तात्त्पर्य यह है की परम आनंद तो केवल येसु मसीह ही दे सकते हैं ।।
इसलिए , जीवंत आदर्श से सत दीक्षा ग्रहण कर , उनके पथ पर बढ़ चलने से ही ; मनुस्य केन्द्रायित हो जाता है । आज पूजा पाठ तो लोग बहुत करते हैं , हाल में ही राम नवमी भी रजो गुण तरीके से संपन्न हुआ , परन्तु राम को केन्द्रायित कर चलने वाले वाल्मीकि आज किधर हैं ?? हनुमान के तरह सत्त्व गुनी भक्ति करने वाले लोग वास्तव मै हैं क्या ?? और है भी तो कितने हैं उस भीड़ में ?? मनुस्य का चरित्र संसोधन केवल केन्द्रायित होने से ही हो सकता है । चरित्र संसोधन होने पर वह अपने सभी समस्या का समाधान स्वयं निकलने में सक्षम है । अपने चरित्र के बल पर ही हनुमान पहाड़ तक को उठा पाए थे , माखी का रूप भी धार पाए थे !!
इस युग में किसके केन्द्रायित हो ??
इसको समझने के लिए हमें पहले जानना होगा की इस्वर कौन हैं और उनके अवतरित पुरुष कौन होने हैं ?? उनको कैसे पहचाना जाये ??
सभी मतों में इस्वर को infinite ( अनंत , असीम ) बताया गया है । Christians उन्हें Supreme Father के रूप में समझते हैं , मुस्लिम उन्हें अल्लाह का स्वरुप देते हैं , हिन्दू उन्हें परब्रम्ह पुकारते हैं । परन्तु इस्वर को असीम बनाने से , उस असीम के अंदर व्याप्त सभी गुण भी असीम हो उठते हैं , जिससे काम , क्रोध , मोह , मात्सर्य जैसे वृत्तिओं का adjustment हम लोगों में नहीं हो पाता । इससे मनुस्य वृत्ति का स्वामी नहीं बनता , अपितु स्वयं वृत्तिओं का दास हो उठता है । इसी से ही आज संसार के सभी समस्याओं की उत्त्पत्ति हुई है ।
जब वही असीम , ससीम (finite) बनकर मनुस्य रूप धरते हैं , तब उस मनुस्य सरीर में छुपे , उन असीम की आराधना करने से मनुस्य का character adjustment हो पाता है । हमारे समक्ष ” फॉलो करने हेतु प्रत्यक्ष उद्धारण रहता है ” . आज सभी समुदायों में ( हिन्दू , मुस्लिम , सिख , ईसाई ) के समक्ष जीवंत आदर्श नहीं रहने से ही भारी गड़बड़ी हुई है ।
इसलिए युग अनुकूल पुरुषोत्तम , अथवा पैगम्बर या प्रोफेट को पहचानना होगा , एवं उनके केन्द्रायित होकर चलने से सभी समस्या का समाधान मनुस्य को मिल सकता है – All the Prophets of The Past are consummated in the Divine Man of The Present !!
केन्द्रायित होने से क्या होता है ??
केन्द्रायित होने से , और उनके अनुरूप आचरण करने से ही ; ससीम मनुस्य के अंदर छिपी हुई वह असीम जीवन ऊर्जा जागृत हो जाती है – जैसे श्री हनुमान के अंदर हुई थी । मन में अनुराग , चित में सत चित आनंद प्रस्फुटित हो उठता है । गंभीर अभाव में भी वह नीर भाव रहता है । शोक नहीं रहती , बेदना , पीड़ना गायब हो जाता है । एक बात मन मै जागृत रहती है – ” मै एवं तुम ” , हम दोनों के बीच कोई नहीं । यह भाव स्वामी विवेकानंद को हुआ था , और सहस्रा रूप से रामकृष्ण परमहंस इस भाव में विचरण करते थे । उनका परवर्ती जीवन ” श्री श्री ठाकुर अनुकुलचंद्र चक्रबर्ती ” के रूप में हुआ । इस बात की पुष्टि कशी के पंडितों के भी की ।
“इस बार पूर्ण संसारी बन के आये हैं , सहस्रा शिष्यों के मध्य रहेंगे । सिस्यों को पुत्र की तरह लालन पालन करेंगे । संसार के मध्य रहते हुए भी परम त्यागी रहेंगे । आठ सिद्धिओं की चिंता नहीं करेंगे । शब्दभेदी (penetrator ऑफ़ sound) , उपरूटेर ऑफ़ pisach( पिसाच को जड़ से उखड फेंकने की ख्यामता रखेंगे , इच्छामृत्यु रहेगी – ठाकुर जी की कुंडली से ली हुई कुछ बातें ” !!
रामकृष्ण परमहंस कथामृत में कह गए थे – ” और एक बार आना होगा , इसलिए पार्सदों को पूर्ण ज्ञान नहीं दे रहा हूँ ” . 1886 में वे देह त्यागे , एवं 1888 में उनका पुनर जन्म , श्री श्री ठाकुर के रूप में होता हैं ।
जीवन में गुरु की प्रतिष्ठा से ही सर्व समस्या का समाधान मिलता हैं , चाहे मनुस्य किसी भी क्षेत्र में कार्यरत ही क्यों न हो । श्री श्री ठाकुर के शिष्यों में से कुछ लोग थे – नेताजी सुभाष चंद्र बोस , लाल बहादुर शास्त्री ( पूर्व प्रधान मंत्री ) , श्याम प्रसाद मुख़र्जी ( हिन्दू महासभा के पूर्व सचिव ) , देशबंधु चित्तरंजन दस , ख़लीलूर रेहमान , eugene exman ( हार्वर्ड यूनिवर्सिटी , हार्पर कॉलिंस के एडिटर) , पंडित बिनोदानंद झा ( पूर्व बिहार के मुख्या मंत्री ) ……. लिस्ट अनंत हैं . महात्मा गाँधी भी देशबंधु चित्तरंजन की बिनती पर सत्संग आश्रम देओघर आये थे । उनके व्यक्तित्त्व से गांधीजी बहुत प्रभावित हुए थे ।
केन्द्रायित हो जाएं ! इसीसे जीवन के मर्म की सिद्धि होगी !!