गिरिडीह : जिला के सरिया प्रखंड में उच्च विद्यालय एक समय में इस क्षेत्र के लिए पहचान था। समय बीतता गया राजनीति होती गई और विद्यालय बर्बाद होता गया।
कैसे बना था हाई स्कूल घुठिया पेसरा
वर्ष 1983 में वर्तमान मुखिया मोदी जी ने अपने क्षेत्र के विकास को लेकर के जनता से राय मशवरा करा कर एक विद्यालय निर्माण किया।
क्षेत्र बहुत पिछड़ा था मुखिया जी बहुत पढ़े लिखे थे। विद्यालय दूर दूर ना हो जाने के कारण आसपास के लोग पढ़ नहीं पाते थे।
मुखिया होने के नाते वे आम जनता को सुविधा के लिए भूमि दान करा कर एक बहुत बड़े एरिया में एक विद्यालय का निर्माण करवाया।
कहां कहां से आते थे लोग पढ़ाई करने
जिले के गिने-चुने उच्च विद्यालय का नाम हुआ करता था। आसपास क्षेत्र के लिए पहचान था।
इस विद्यालय में उत्तर दक्षिण पूरब पश्चिम 12 से 15 किलोमीटर के दूरी के विद्यार्थी पढ़ने आया करते थे।
कैसा था स्कूल का भविष्य
उच्च विद्यालय घुठिया पैसरा के आसपास कोई पढ़ाई का साधन नहीं था। इस विद्यालय में हजारीबाग गिरिडीह जिले के विद्यार्थी पढ़ने आते थे। बाद के समय में कोडरमा व अन्य जिलों के विद्यार्थी वहां पर रखकर पठन-पाठन का कार्य किया करते थे।
क्या क्या सुविधा था उच्च विद्यालय घुठियां पेसरा में
जब विद्यालय का निर्माण कराया गया था तो वहां पर छठी से लेकर दसवीं क्लास तक की पढ़ाई होती थी। लेकिन बाद के समय में यूकेजी से लेकर दसवीं तक की पढ़ाई होने लगी थी।
बाद में फिर से नर्सरी से लेकर 5 वर्ग तक की कक्षाएं फिर बंद कर दी गई।
विद्यालय में 1998 से 2007 तक छात्रावास की फैसिलिटी था। इस समय विद्यालय अपने उच्च स्तर पर पठन-पाठन के साथ-साथ बच्चों की भी संख्या बहुत ज्यादा थी।
दूर-दूर बच्चे पढ़ा करते थे यहां की शिक्षकों की गुणवत्ता बहुत ही अच्छी थी।
विद्यालय का भविष्य अंधकार में कैसे हुआ
शुरुआती समय में बहुत ही कम फीस पर बच्चों को पढ़ाया जाता था । समय के साथ ही फीस में बढ़ोतरी होती गई। 2000 बाद के समय में विद्यालय को सरकारी करण की प्रक्रिया शुरू की गई थी।
शिक्षकों में उत्साह था, बच्चों की संख्या भी अधिक थी। समय के साथ अन्य विद्यालयों की तरह उच्च विद्यालय घुठिया पेसरा को भी सरकारी ना करके विद्यालय को अनुदान दिया जाने लगा। 2004 के बाद विद्यालय को खुद से रजिस्ट्रेशन करने का दर्जा भी प्राप्त हो गया।
सरकार द्वारा विद्यालय को एक मोटी रकम का भुगतान किया जाने लगा। शिक्षकों के द्वारा बच्चों से भी फीस लिया जाने लगा था। और सरकार का अनुदान साल में एक बार आता था जिसे शिक्षक सीनियरिटी के आधार पर आपस में बंटवारा कर लिया करते थे ।
विद्यालय समय के साथ शिक्षकों की बढ़ोतरी की मांग की जाने लगी। यहीं से विद्यालय का भविष्य अंधकार में जाने लगा। क्योंकि विद्यालय के कार्यकारी समिति के कुछ व्यक्ति खुद के परिवार से शिक्षक नियुक्ति करने का विशेष अधिकार का उपयोग किया।
अच्छे शिक्षक स्कूल को क्यों छोड़ने लगे
विद्यालय में शिक्षक पढ़ाने के लिए होते हैं। अच्छे शिक्षक पढ़ाई पर जोर देते हैं। जब से सरकार का अनुदान विद्यालय को मिलने लगा। विद्यालय के कार्यकारी समिति के सदस्य पैरवी लगा लगा कर गांव के शिक्षकों की नियुक्ति करने लगे।
बाहर के शिक्षक के मन में असंतोष साथ ही साथ विद्यालय समिति के सदस्य लोगों का व्यवहार शिक्षकों के प्रति अच्छा नहीं रहा।
क्या कहते हैं पूर्व के विद्यार्थी उच्च विद्यालय घुठिया पेसरा के बारे में
पूर्व विद्यार्थी जो उच्च विद्यालय घुठिया पेसरा से पढ़कर जो बाहर आए हैं । विद्यालय की स्थिति जो वर्तमान में है इसे देखकर विश्वास नहीं करते। पूर्व के विद्यार्थी कहते हैं मुझे विश्वास नहीं है कि यह वही उच्च विद्यालय है जहां से मैं पढ़ा हुं। विद्यालय का मैनेजमेंट सिस्टम है वह पूरी तरह से खुद के बारे में सोचने लगा है। वहां के जो प्रधानाचार्य हैं,अपना रिटायरमेंट के लेकर चिंतित हैं। विद्यालय के भविष्य को लेकर उन्हें कोई चिंता नहीं है।
क्या सोचते हैं वहां के पूर्व मुखिया
पूर्व मुखिया गोपाल प्रसाद यादव सूत्र के द्वारा खबर किए कि जब से इस विद्यालय में शिक्षक की नियुक्ति को लेकर के वहां के विधायक सम्मिलित हुए हैं।
उच्च विद्यालय मैं सिर्फ और सिर्फ राजनीति होती है। यह सारा खेल अनुदान राशि को लेकर के है। विद्यालय में पढ़ाई नहीं होती। बच्चे ट्यूशन पर आश्रित होते हैं।
वहां के शिक्षक गणित सोशल साइंस और साइंस के शिक्षक क्लास रूम में ना पढ़ा कर विद्यार्थी को ट्यूशन आने के लिए प्रेरित व मजबूर करते हैं।
क्या सोचते हैं आसपास के ग्रामीण
कुछ ग्रामीण आसपास के अभिभावक नाम ना बताने के शर्त पर बताएं कि विद्यालय में कुछ शिक्षक का इंटरफेयर बहुत ज्यादा होता है।
विद्यालय के प्राचार्य अपना रिटायरमेंट को देखते हैं। विद्यालय के शिक्षक ट्यूशन या अनुदान साथ साथ बच्चों से उगाही करने में ध्यान देते हैं।
वर्तमान विद्यार्थियों का क्या कहना
छात्राओं की मजबूरी है कि वह दूर जाकर के पठन का कार्य नहीं कर सकती। मजबूरी वर्ष उच्च विद्यालय में पढ़ने को विवश हैं।
छात्र एवम छात्रा का नाम गोपनीयता के आधार पर ना बता कर, वह विद्यालय के बारे में कहते हैं। यहां के कुछ शिक्षक अगर कंप्लेन किया जाता है तो किसी ना किसी बहाने को लेकर के पिटाई कर देते हैं।