बहुदा अविकसित बुद्धि एवं उत्तेजित मस्तिष्क ही मानसिक विकृत्ति को जन्म देती है , जिसके आक्रोश में आकर दो या अधिक मनुस्य एक दुसरे के प्रति हिंसा के लिए आतुर होते हैं । हाल ही के दिनों से हिजाब को लेकर जो देश का माहौल गड़बड़ाया है चलिए आज उस पर चर्चा करते हैं !!
किसी भी ईस्वरीय सभ्यता में नारी का बहुत ही ऊंचा दर्जा है । प्रत्येक नारी माँ का स्वरुप है , जिसके मनोभाव का उच्चा होना एक अच्छी सभ्यता की नीव है । नारी अगर “corrupted” हो जाये तो , “unwanted progenies” समाज में जन्म लेते हैं , जो समाज को युद्ध एवं रोग की तरफ आकर्षित करते हैं ।
नारी पुरुष किस प्रकार “corrupt” हो सकते हैं ??
प्रकृति ने पुरुष एवं नारी को एक दुसरे का परिपोसक बनाया है । साधारणतः दोनों ही एक दुसरे के तरफ एक “natural” आकर्षण की अनुभूति करते हैं , जो “spontaneous” है । आर्य ऋषिओं ने इसी “spontaneous” आकर्षण को सकारात्मक तरीके से नियंत्रित करने हेतु विवाह संस्कार का मूल मंत्र दिया । साथ ही नारी का वैशिष्ट्य पुरुष से अलग होने के कारण , दोनों का ही मानसिक स्वरूप भिन्न है । इसी मानसिक स्वरूप की भिन्नता को नज़र में रखते हुए , नारी जाती का शिक्षा संस्कार , आचरण संस्कार , कर्म कौशल भी अलग है ।
। आर्य सभ्यता में नारी जाती को माँ पिताजी की निगरानी में ही प्रारंभिक शिक्षा का प्रयोजन था । इससे नारी “unwanted attraction” से बच के रहती थी । उच्च वर्ण की नारिया , क्या परदे में नहीं रहती थीं ?? इसी के कारण वे बाहरी नकारात्मक आकर्षण से सुरक्षित रहती थीं । यह कोई दकियानूसी आचरण नहीं था , परन्तु एक उच्चा चरित्र की स्त्री , को पोषण था जो आगे चलकर एक महान सभ्यता की नीव रखते थे ।
समय बदला !! नारी “objectify” होने लगी . आज “feminism” के नाम पर बड़े बड़े “intellectuals” बुद्धिजीवी नारी को विकृत तौर पर प्रोजेक्ट करते हैं . फिल्म इंडस्ट्री तो नारी के सरीर का विज्ञापन करके करोड़ों रुपये कमाती है । यह सब एक विकृत धारा है , जो पुरे समाज में एक कर्रप्टेड वातावरण को जन्म देती है । हम जो देखते है , वह हमारे “sub-conscious” में सुषुप्त अवस्था में स्टोर होता है , जो धीरे धीरे हमारे मस्तिष्क को नियंत्रित करते हुए , हमारे चरित्र को भी आचरण के माध्यम से उसी दिशा में धकेलता है । इसी आचरण स्वरुप आज हस्तमैथुन , विकृत यौन सोच , अभी के “generations” में सामान्य हैं !!इसी से ही नारी जाती भी “corrupt” होना प्रारम्भ होती है ।
हिजाब का तात्त्पर्य ??
चेहरे को ढक के रखने से , स्त्री पुरुष बहु रूप से “unwanted attraction” से बच के रहते हैं । इसीसे दोनों का “libido”( कामेच्छा ) नियंत्रित रहता है , जो दोनों के लिए ही फायदेमंद है । व्यर्थ नारी चिंता पुरुष के मस्तिष्क में न रहने से , वह अपने ब्रम्हचर्य को पालन करते हुए , जीवन में अग्रसर हो सकता है एवं समाज , कृश्टि के लिए पौरुष लाभ कर सकता है ।उसी तरह नारी जाती भी “uncorrupted” होते हुए व्यर्थ अट्रैक्शन से बचते हुए सुरक्षित रह सकती है । उसका चरित्र भी माँ तुल्य हो उठ सकता है । हिजाब का यही मूल लक्ष्य भी है , जैसे घूंघट आर्य नारियों का था ।!!
समाधान !!
हिजाब पर “controversy” खड़ा किये बगैर , सरकार को हिजाब का “manipulated version as per contemporary age ” जिसमे की केवल चेहरे को “completely या partially” धक् कर रखने का प्रयोजन हो , सभी स्त्रियों के लिए , कम से कम जब तक maturity की अवस्था तक उनका साइकोलॉजिकल temperament न पंहुच जाए । साथ ही इसे कट्टरपन्ति विचार धारा न बतलाते हुए , इसके सकारात्मक aspects को हर पिता एवं माँ अपनी बच्चियों को समझाएं . इससे भविस्य में हमारी बच्चियां सुरक्षित ही रहेंगी ।साथ ही पुरुषों को ब्रम्हचर्य के फायदे , जीवन का लक्ष्य एवं वेदांत के नियमो पर सही शिक्षा देना अति आवश्यक “indispensable” है , जिससे वे भ्रमित न होकर देश एवं जाती के लिए सूर्य के भांति खड़े हो उठें !!
न भूलें : धर्म का अर्थ है विषय के मूल कारन को समझना । हिन्दू , मुस्लमान , सिख , ईसाई धर्म नहीं हैं !!